Wednesday, August 17, 2011

मै अन्ना हजारे…...

अन्ना नही आंधी है, दूसरा महात्मा गांधी है, के नारे दो दिनो से सारे देश में गूंज रहे है। युवा, बुजुर्ग, बच्चे किसी को न खाने की सुध है न पीने की। अन्ना की गिरफ्तारी की निंदा देशभर में की जा रही है और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी हो रहे है। आम आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ सडक पर उतर आया है। हर जगह सिर्फ एक नजारा अन्ना हजारे आगे बढो हम तुम्हारे साथ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश एक हो चुका है । अन्ना के समर्थन में हर जाति हर धर्म के लोग शामिल है। सभी को भ्रष्टाचार से राहत चाहिए। मंहगाई से पिस चुकी जनता को अन्ना के रूप में तारणहार चाहिए। अन्ना जिस मु्द्दे के लिए लड रहे है उसकी वजह से सारा देश एक साथ है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी के लिए लोगो को अंहिसा का रास्ता दिखाया। दूसरे गांधी के रूप में प्रचलित अन्ना हजारे ने अब भ्रष्टाचार को खत्म करने का बीडा उठा लिया है और वे उसे खत्म कर के ही रहेंगे। पूरा देश अन्ना के रंग में रंग चुका है। अन्ना ने देश के युवाओ को भ्रष्टतंत्र के खिलाफ एक साथ आने की अपील की है और बडी तादाद में युवावर्ग अन्ना के साथ है। भ्रष्टाचार से त्रस्त देश की जनता अब चुप नही बैठ रही है बल्कि सरकार से जवाब चाहती है। सरकार अब अन्ना के सामने झुकने को मजबूर है। भ्रष्ट व्यवस्था का खात्मा करने के लिए अन्ना ने जो आंदोलन छेडा है उससे ना राजनेता बचेगें और नाही सरकारी अफसर। बस देर है जनलोकपाल बिल को अन्ना के शर्तो के मुताबिक पास होने की। राजनेता भी समझ जाए चाहे वो किसी भी पार्टी के हो अब जनता उनसे जवाब जरूर मांगेगी ।

Monday, August 15, 2011

ब्रिटिश राज…..

पुणे के मावल में किसानो पर की गयी फायरिंग ब्रिटिश राज की याद दिला गयी। आजादी के लिए लडनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों के आन्दोलन को दबाने के लिए जिस तरह फायरींग की जाती थी उसी तरह पुणे के मावल में किसानो को अपने हक की लडाई लडने से मना करने के लिए पुलिसिया जुल्म का कहर ढाया गया। डॅम से पाईपलाईन बिछाए जाने के लिए किसान कई दिनों से विरोध कर रहे थे। इस पाईपलाईन का पानी पिंपरी - चिचंवड इलाके यानी उपमुख्यमंत्री अजित पवार के गढ में जानेवाला था। जिसकी वजह से मावल के किसानो को खेती के लिए पानी नही मिल पाएगा इसलिए किसान कई दिनों से इस पाईपलाईन का विरोध कर रहे थे। डॅम से पाईपलाईन बिछाने के काम का उद्घाटन अजित पवार ने ही किया था और किसानों के विरोध से वे बखुबी अवगत भी है। किसानो ने बात नहीं सुनी जाने पर सडकों पर उतर आए मुंबई पुणे हाइवे को जाम कतर दिया था, रास्ता रोकने का मकसद यही है कि सरकार किसी तरह कम से कम चेते तो सही। अब किसानों के इस आन्दोलन की आग के चपेट में मुंबई से पुणे आने और जानेवाली गाडियां आ गईं, घंटों कतार में खडी रहीं। कुछ गाडियों को तो बीच रास्ते से ही लौटना पडा। पुलिस जबरन आंदोलनकारियों को भगाने लगी, अपनी अक्रामता पुलिस भरपूर दिखाने लगी, बदले में गुस्साई भीड ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस लाठीयां भांजती रही और आंदोलनकारी बेकाबू होने लगे। बेकाबू होती भीड को काबू करने के लिए पुलिस ने अंग्रेजो का चोला पहना और फायरिग करनी शुरू कर दी। अगर हम उस दिन का विडीयो देखे तो साफ पता चलता है कि पुलिस ने बर्बरतापुर्ण व्यवहार किया है। पानी के फव्वारे और आंसू गैस का इस्तेमाल से आमतौर पर भीड को तितर बितर किया जा सकता है, यहां तो प्लास्टिक की गोलीयां भी चलाई गयी थी। मानसून सत्र में इसकी गुंज उठी तो विपक्ष ने भी जमकर हंगामा किया और सरकार से इस्तीफे की मांग की। विरोधियों को जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा की पाईपलाईन का काम शुरू करने के लिए शिवसेना नेता ने ही सिफारिश की थी और उसके लिए फंड का प्रावधान करने के लिए कहा गया। सत्ताधारियों का आरोप है की विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह किसानों को घरों में घुसकर मारा गया था। घरों में सामान की तोड- फोड कर दी गयी थी, खेत खलिहान आग के हवाले कर दिये गये थे। जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसान थे, और अब आखिर में उनकी जीत हो गयी क्योंकि कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण पर रोक लगा दी। हमेशा किसानो की उपजाउ जमीन ही प्लांट या फॅक्टरी लगाने के लिए चाहिए होती है। खेतो के लिए जानेवाला पानी धनिकों को दिया जाता है। किसान अब चुप नही रहेंगे ईंट का जवाब पत्थर से देना वो सीख रहे हैं। क्योकि नेता बदल रहे हैं हालात नहीं ।

Wednesday, July 6, 2011

सावधान....

पौधों के लिए मिट्टी खरीदने गयी थी (मि्टटी मुप्त में नही मिलती)। मैने भैय्याजी से कहा पिछले महिने में आपके यहां से गुलाब का पौधा ले गयी थी वो मुरझा गया। मेरे सौ रूपये पानी मे चले गये। मैने वहां झाककर देखा सारे पौधे गटर में रखे थे। मैने उससे कहा हम तो पौधों को फिल्टर का पानी देते है, और तुम तो गटर का फिर भी हमारे पौधे मुरझा क्यों जाते है। भैय्याजी ने कहा मै झुठ नही बोलुंगा मै तो पौधो में गटर का पानी ही डालता हूं क्योंकि मेरे यहां पिने के लिए भी पानी नही है। मैने सोचा गटर के पानी की आदत से पौधो का इम्युन सिस्टम स्ट्रांग हो गया होगा। मुंबई से सटे ठाणे इलाके में हूई घटना को शायद आपने फिल्म डेल्ही बेल्ही में भी देखा होगा, और यह बात सोलह आने सच भी है। एक छात्रा ने मोबाईल मे पानीपुरीवाले की करतूत को कैद किया है। मेरे एक पत्रकार दोस्त ने यह स्टिंग ऑपरेशन न्यूज चॅनेल पर दिखाया था। वाकया ये था की पानीपुरी बेचनेवाला भै्य्या पानी पिनेवाले लोटे में पेशाब करता था और उसे बिना धोये ग्राहकों को पानी पिने के लिए रखता था। अगर यह बात वह छात्रा उजागर नही करती तो यह सिलसिला बरकरार रहता। रास्ते पर ठेला लगानेवाले लोगों को उल्लू बनाने की नयी तरकीबे ढूंढते रहते है। एक दिन ऑफिस के लिए टॅक्सी से जा रही थी, सिग्नल लगा था। सामने देखा तो एक स्लेट पर लिखा था सेब का ज्यूस केवल दो रूपये में। ज्यूस बनानेवाले ने पानी से भरे एक बरतन में खाने का कलर मिलाया, वो भी नकली था। एक सेब को कद्दुकस करके पानी में डाल दिया। हो गया सेब का ज्यूस तैय्यार। कल की घटना ले लो सेब बेचनेवाले का सेब गटर में गिरा तो उसने गटर से सेब निकालकर फिर से बेचने के लिए रखा वो भी बिना धोये। जिस तरह गटर का पानी पिकर पौधे लहलहा रहे है उसी तरह आम इन्सान भी मिलावटी चिजे खाने पर मजबूर है, और उसका शरीर भी उसी तरह की चिजों के लिए ढल चुका है। बिना मिलावट की शुध्द चिजे खाना आम आदमी के बस की बात नही रही क्योंकि आमदनी अठ्ठनी और खर्चा रूपय्या जो हो गया है। लेकिन आप को अपने सेहत का खयाल रखना लाजमी है क्योंकि रास्ते पर मिल रही खाने की चिजे भले ही सस्ती मिले लेकिन उसकी वजह से होनेवाली बिमारी से आप बच नही सकते । दवाईयों पर खर्च करने के बजाए खाते वक्त सावधान....

Tuesday, July 5, 2011

वडापाव की महिमा....

फर्ज करें आप मुंबई के किसी बाज़ार में सैर सपाटे के लिए आए हो और आपको अचानक से सुनाई दे कि गरमागरम छत्रपति ले लो, फिर एक और अवाज़ मिले कि चटकारे शिव वडा ले लो। तो आपको आश्चर्य होगा। हद तो तब हो जाएगी जब आपको जोरो की भुख लगी हो, स्टॉल के पास आकर आप अगर वडा पाव माँगे तो आप पर सवालों की बौछार हो कि कौन सा ब्रैन्ड दूँ शिव वडा या छत्रपति वडा। लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर अब गलियों में भी राजनीति शुरु कर दी है। इस नई गरमा गरम राजनीति का ही नतीजा है कि वडा पाव के नाम से अब राजनीति शुरु हो गई है। शिवसेना कह रही है कि मराठी युवकों को रोजगार देने के लिए शिव वडा की शुरूआत की है। स्वाभिमान संगठन का दावा है कि शिव वडा पाव के स्टॉल्स अनाधिकृत है । शिव वडा पाव के स्टॉल्स हटाने के लिए स्वाभिमान संगठन ने छत्रपती वडा के स्टॉल्स लगाये। आनेवाले दिनो में कांग्रेस बाजार में कांदा पोहा लेकर आनेवाली है, उसका नाम अगर तिलक कांदा पोहा हो जाए तो आप अचरज नहीं कीजिएगा। शायद ये राजनीतिक पार्टियाँ गलियाँ और सडकों के नाम महापुरुषों पर कर कर के उकता गई हैं , अब लोगों के प्लेटों तक महापुरुषों को पहुँचाने का बीडा उठाया है। शायद इनका मानना है कि महापुरुषों के डर से मँहगाई भाग जाएगी और हाजमा भी ठीक रहेगा। घडी की सुई की माफिक निरंतर चलने वाली मुंबई हर किसी को अपने आप में समा लेती है। कहते है मुंबई में सर छुपाने के लिए आसरा तो नही मिलेगा लेकिन मुंबई में रहनेवाला गरीब से गरीब आदमी भूखा नही रह सकता। क्योकि एक वडा पाव से गुजारा करने वाले लाखो लोग हैं। इसे हर कोई खाता है चाहे वो अमीर हो या फिर गरीब, शाम के वक्त वडा पाव खाने के लिए ठेले पर लोगों का हूजूम लगता है। कोई पेट भरने के लिए खाता है तो कोई चखने और मुँह का जायका बदलने के लिए। वडा पाव एक ऐसी चीज है जिसे खाने से किसी को कोई परहेज नही होता। लेकिन मुंबई में शिवाजी महाराज के नाम पर वडा पाव की राजनीति कढाई में गरमाने लगी है। ज़रा सोचिए अगर मुंबई की घमासान के माफिक पूरे देश में यह चलन चलने लगे तो कैसा होगा। दिल्ली में बहादुर शाह जफ़र हलवा के साथ रणजीत सिंह छोले कुलचे की अवाजें आने लगेगी। रानी लक्ष्मी वाई जलेबी और भगत सिंह पराठे का भी चलन शुरु हो जाएगी । तो उत्तर प्रदेश में वाजिद अली शाह कबाब और बीबी हजरतगंज सेवई की दुकाने सजने लगेगी। हद तो तब हो जाएगी जब सुभाषचन्द्र बोस रसगुल्ले और विवेकान्द मिठाई कलकत्ते में बिकने लगे। अगर उत्तर पूर्व और पश्चिम महापुरुषों के नाम पर समान बेचने लगे तो दक्षिण ही क्यों पीछे रहे वो भी अपने मसाला डोसा को पेरियार डोसा नाम रख देंगे और मेन्दु वडा को टीपू सुल्तान वडा के नाम से बेचने लगेंगे। मुझे लगता है कि आने वाले दिन इससे भी गए गुजरे होंगे। महापुरूषों के नाम को इस्तेमाल करके अपनी झोली भरनेवाले राजनेता महज वोटो के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है। आम लोगों के निवाले को ब्रैन्डेट बनाकर महंगा बनाया जा रहा है, और उन्हे उनसे दूर किया जा रहा है। 2011 में होनेवाले महापालिका चुनाव की तैयारी मुंबई में तो शुरू हो चुकी है लेकिन आम आदमी का निवाला वडा पाव का टेस्ट कडवा बनते जा रहा है। राजनीति विकास के नाम पर करने के बजाए आज के राजनेता अपनी राजनीति को पहले ही महापुरुषों के नाम की बैसाखी के जरिए लोगों की भावना से सत्ता हथियाने में कोई कसर नहीं छोडना चाहते। थोडे तो शर्म करो शायद शर्म उसे आती है जिसे चेतना होती है यहाँ तो चेतना और मानवता तो कब के फुर्र हो चुकी है...धन्य हैं हमारे राजनेता।

बक्श दो....

रात के करीब दो बज रहे थे, 17 साल की लडकी पुणे से मुंबई के समीप कल्याण स्टेशन पर उतरी। लोकल ट्रेन सुबह चार बजे से शुरू होती है तो स्टेशन पर ही लोकल ट्रेन का इंतजार करना ज्यादा सुरक्षित मान कर रुक गई। अकेली स्टेशन पर रूकने में थोडा डर भी लगने लगी लिहाजा आपने एक दोस्त को स्टेशन पर ही बुला लिया जिससे थोडी सुरक्षित महसूस कर सके। दोनो हमउम्र थे तो लोकल ट्रेन का इंतजार करते करते बातें कर रहे थे। उसी समय तीन मनचलें वहां पर आए उनके हाथ में चाकू था। चाकू की नोंक पर उन्होने लडके को धमकाया तो लडकी का दोस्त वहां से भाग गया, और मनचले उस लडकी को झाडीयों के पीछे ले गये और बारी बारी उस पर बलात्कार किया। इस घटना के दो दिन बीतते ही डोंबिवली इलाके में ही लडकी का दोस्त उसे घर दिखाने के बहाने ले गया और तीन दिनों तक लगातार उससे बलात्कार करता रहा किया। इस घटना के दो दिन बीतते ही और एक घटना सामने आयी है जहां नाबालिग लडको ने ही बलात्कार किया है। एक सप्ताह में बलात्कार के तीन मामले सामने आये है। ये बातें महज एक सप्ताह और एक ही इलाके की थीं। पूरे देश में क्या स्थिती होगी यह तो सोंच कर ही दिल दहने लगता है। दिल्ली के समीप ग्रेटर नोयडा में तो हैवानियत की ही हद पार हो चुकी है। आये दिन कोई ना कोई वारदात होती रहती है। लडकियों पर हो रही अत्याचार के आंकडे बढते ही जा रहे है। राह चलती लडकी पर फिंकरे कसना या उसका पीछा करना ये तो अब रोजमर्रा की बातें हो चुकी है और उन्हे अनदेखी करना भी लडकियां की मजबूरी बन गई है। जिसे बक्त की धार ने नजरअंदाज़ करना लडकियों को सीखा दिया है। मेरे इस ब्लॉग लिखते लिखते एक और मामला सामने आया है वो ये है कि 12वी में पढ रही छात्रा की ब्लू फिल्म निकालकर उसे सार्वजनिक कर दिया गया। लडकी के पिता का 45 वर्षीय दोस्त पिता के साथ शराब पीकर अक्सर घर पर आता था। शराबी दोस्त लडकी को अपनी लडकी कहता था। पिता के दोस्त ने पीडिता को मोबाईल भी खरीद कर दिया । वो अब लडकी को अपने जाल में फसाने की कोशिश करने लगा। आरोपी ने पीडिता से कहा की तुम 18 साल की हो चुकी हो तो मुझे गवाह के तौर पर तुम्हारा हस्ताक्षर चाहिए। लडकी को उसने इस बारे में घर पर किसीसे जिक्र ना करने की हिदायत दे दी। जब लडकी उस जगह पहूंची तो आरोपी ने उसे रिक्शा में अपने तीन दोस्तो के साथ जबरन बांद्रा के कोर्ट ले गया और उससे शादी कर ली। फिर उसे चाकू की नोंक पर मंदिर ले गया और उसके गले में मंगलसुत्र पहना दिया। घर पर बात बताई तो भाई और पिता को जान से मारने की धमकी आरोपी देता रहा। खुद को काग्रेस का कार्यकर्ता बतानेवाला यह शक्स 45 साल का है और लडकी 19 साल की। उसे एक लॉज में ले जाकर उसके साथ शारीरीक संबध बनाए और उसकी ब्लू फिल्म बनायी। मां के लाख बार पूछने के बाद लडकी ने चुप्पी तोडी तब तक अस्मत तार तार हो चुकी थी। हवस की आग इस कदर हावी होती जा रही है की उसके आगे क्या लडकी , क्या बच्चियां या अधेड उम्र की महिलाएं कोई भी बच नही पा रही है। वहशीपन ने अच्छे बुरे का फर्क ही मिटा दिया है। यह एक मानसिक विकृती है जिसका इलाज होना बेहद जरूरी है। रोज रोज हो रहे अमानवीय कृत्य से वो अपने आप को बचा नही पाती, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी है जहां अंधा प्यार हावी हो जाता है। चिकनी चुपडी बातों पर लडकियां विश्वास रखकर अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है। मां हमेशा लडकी की दोस्त होती है, अपने बच्चियों के साथ दोस्ती करे, उन्हे अच्छे-बुरे की समझ दे। उनकी दिन भर की बातें सुने जिससे आगे चलकर अनहोनी को टाला जा सकता है। कई अनगिनत लडकियां हवस का शिकार बन चुकी है और उन्होने इसे पेशे के तौर पर भी अपना लिया है, क्योंकि तार तार हुई अस्मत को समाज में सम्मान नही मिलता है। बलात्कारियों के लिए सजा का प्रावधान तो है, लेकिन कानून का डर किसी को नही है। दो चार साल की सजा काटकर फिर जुर्म करने के लिए तैयार हो जाते है, दरिन्दे।मेरी गुजारिश है कि इस अमानवीय कहर झेल चुकी बच्चियों का हमेशा ख्याल रखे। मासुमों की जिंदगी नर्क बनाने वालों को कानून के हवाले करके उन्हे कडी से कडी सजा दिलाने में आप भी मदद करे। कौन जाने आपके इस एक मदद से किसी के सपने बिखरने से बच जाए। भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह समाज एक साथ आया है उसी तरह महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए आगे आना होगा तभी तो सही तौर पर भारतीय संस्कृति की मर्यादा बच सकेगी।

Monday, July 4, 2011

बेटी बचाओ...

मेरे एक दोस्त को लडकी हुई वो काफी खुश हुआ । घर में लक्ष्मी आयी तो उसने सारे ऑफिस में मिठाई बांटने के साथ खुशीयाँ भी बाँटी। उसे बेटी ही चाहिए थी तो उसकी मुराद भी पुरी हो गयी। आज लडकियां भी लडकों के बराबर ही सफालता हासिल कर रही है। इस साल महाराष्ट्र औऱ खासकर कर मुंबई में दसवी और बारहवीं के नतीजों में लडकियों ने बाजी मारकर सफलता का परचम फिर एक बार लहराया। घर में लक्ष्मी आने के बाद जिस तरह मेरा दोस्त खुश हुआ उसी तरह कई अनगिनत लोग भी खुश होते होंगे क्योंकि उन्हे भी लडकियों की इच्छा होती है। लेकिन सभी नही, और यह बात साबित हो चुकी है। खूबसुरत दुनिया में अपने नन्हे कदम रखने से पहले उन्हे गला घोट दिया गया, किलकारियों से आंगन को गूँजने से पहले ही खामोश कर दिया गया, अपनी भीनीं खुशबू से बाबुल का आंगन महकानेवाली नन्ही कली को खिलने से पहले ही कुचल दिया गया। पिछले एक साल में महाराष्ट्र में 95 हजार 332 गर्भपात कराये गये। कोख में पलनेवाले बच्चे का परीक्षण किया जाता है कि लडका है तो गर्भ पल जाता है और अगर लडकी है तो गर्भ में गला घोट दिया जाता है। दुनिया में आने से पहले ही उसे मौत का रास्ता दिखा दिया जाता है। यह कडवी सच्चाई और आंकडे तब साफ साफ दिखने लगे जब महाराष्ट्र के बीड जिलें में 10 से 15 अविकसित गर्भ (अजन्मे बच्चे का शरीर पाया गया, उसे शरीर भी नही कहा जा सकता क्योंकि बस गर्भ ने आकार लिया ही था दूसरे शब्दों में कहें तो मात्र 2 महीने के भ्रुण) नदी के पास फेंके पाये गये और यह सिलसिला कई दिनो तक जारी रहा। स्वास्थ विभाग कुंभकर्ण की नींद सो रहा था। बीड जिले के बाद अन्य जिलों में जब अविकसित भ्रुण मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसे अपनी नीं से जागना पडा। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी की गयी। अवैध रूप से चलनेवाले कई सेंटरों को सील कर दिया गया। कानून बनाए जाते हैं तो तोडने के लिए भी अनगिनत रास्ते बनाने वालों की कमी नहीं है। कुकुररमुत्ते की तरह सोनोग्राफी सेंटर पनपने लगे है। गर्भ में लडकी होने पर तुरंत गर्भपात करा दिया जाता है, कहा भी जाता है कि , दो घटें में आप आजाद हो सकती हैं। पचास साठ साल पहले कम से कम बच्चा पैदा होने का इंतजार तो किया जाता था। राजस्थान और उत्तर भारत में लडकियों को पैदा होते ही मार डाला जाता था। इन्हें मारने के भी कई तरीके अख्तियार किए जाते थे। कभी नमक को तुरंन्त पैदा हुई बच्ची के जीभ पर रखा दिया था, तो कभी पुरंत पैदा हुई लडकी को दूध में डूबो दिया जाता था। कई बार तो इन्सान बर्बर होकर के गला घोंटकर या फिर पटकपटकर उनकी जान ली ले लेते थे। आधुनिक और विकसित समाज में लडकियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने ग्रामपंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण देने की घोषणा की है, लेकिन कई बहू, बेटियों को उनके गर्भ में पलनेवाले जीव को बचाने का अधिकार नही है। आनेवाले समय में सभी को मां, बहन, या पत्नी नसीब भी होंगी या नही इसका आकलन करना मुश्किल है। सोनोग्राफी सेंटर पर छापेमारी करके हासिल कुछ नही होगा क्योंकि लडकी को बोझ समझने की सोच समाज में आज भी बरकरार है, और यह बडे ही अचरज की बात है, जहां शहर की लडकियां तरक्की करके आसमान छू रही है। कई अनगिनत उदाहरण सामने हैं जहाँ महिलाओं ने अपने परिवार के साथ साथ अपने समाज और देश का नाम रौशन किया है। मातृभूमी को माँ कहने वालों बेटी बोझ नही है, उसे बचाईये....।

Friday, April 29, 2011

रक्षक भी नही महफूज

महाराष्ट्र के कोल्हापूर में एक ऐसा रूंह कापनेवाला मामला उजागर हुआ हैजिसे सुनकर इन्सानियत भी शर्मसार हो गयी है। महिलाओं की सुरक्षा काजिम्मा उनके कंधो पर देने के लिए जिन्हे तैय्यार किया जा रहा था। उनका हीआंचल दागदार हो गया है। ये वाकया है पुलिस ट्रेनिंग कॅम्प का जहां 11ट्रेनी महिला पुलिस गर्भवती होने का खुलासा हुआ है। और यह खुलासा किया हैखुद पिडीता ने। पिडीत लडकी के बयान के अनुसार ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर नेउसे घर बुलाकर उसपर बलात्कार किया। ट्रेनिंग के दौरान अलग अलग subjectपढाकर उसका इम्तिहान लिया जाता है। इंस्ट्रक्टर ने प्रश्नपत्रिका देने केबहाने पिडीता को घर पर बुलाया । इंस्ट्रक्टर शादीशुदा और एक बच्चे का बापहोने की वजह से पिडीता को उसके घर जाने में कोई संदेह नही हुआ लेकिनआरोपी के घर जाने के बाद वो उसका शिकार हो गयी। वहीं आरोपी के अनुसार वो बेकसुर है और इसमें बडे पुलिस अफसर ज्ञानेश्वर मुंडे, विजय परकाले शामिल है, जिनका गर्भ पिडीता के पेट में पल रहा है। आरोपी ने बयान दिया है की उसकी छवी साफ सुथरी है और वह अनुशासन बरकरार रखते है। उनके पढाये गये SUBJECT ट्रेनीयों को अच्छी तरह समझते भी है । आरोपी ने पिता के बारेमें विस्तार से बताने की वजह से पीडीता उससे काफी प्रभावित हुई। और तभीसे फोन का सिलसिला शुरू हुआ। बातचीत का दौर चलता रहा और इसी दौरान पिडीताने आरोपी से शिकायत की उसे हर बार बंदोबस्त पर लगाया जाता है और बदले मेंउससे बडे पुलिस अधिकारी शारीरीक संबध बनाते है। इस बारें में शिकायत नाकरने के लिए उसे धमकाया जाता था। यह पुरा बयान उस आरोपी ने अपना दामन बचाने के लिए कहा है, सच्चाई कुछ और भी हो सकती है. ट्रेनिंग सेंटर में चल रहे सेक्स स्कैंडल के मुख्य कर्ताधर्ता बडे पुलिस अफसर है। कोल्हापूर में बकायदा एक लॉज में एककमरा बुक रहता था और वहां पर सरकारी गाडीयों में लडकीयों को लाया औरपहूंचाया जाता है। इतना बडा राज खुलने के बाद अब आम लोगो का पुलिस पर से विश्वास उठता जा रहा है। सबसे एहम बात तो अब सामने आयी है की महिलाओं को लैंगिक अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कमिटी बनायी गयी थी जिसमें से एक सदस्य विजय परकाले है, जिसके साथ पिडीता के संबंध होने का आरोप आरोपी ने लगाया है। पिडीता के बयान के अनुसार आरोपी ने उसे गर्भपात करने के लिए भी कहा था। राज्य सरकारने इस मामले को अब गंभिरता से लेकर । महिला पुलिस अधिकारी मैथिली झा ने पिडीत महिला पुलिस से पुछताछ की। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले को गंभीरता से लेकर रा्ज्य सरकार से जल्द ही कारवाई करने के लिए कहा है। मिडीया और राजनितीक पार्टीयों का बढता हुआ दबाव देखकर गृहमंत्रालय ने प्रशासनिक जिम्मेदारीयां निभाने में असफल रहे इसी वजह से एस.पी. यशस्वी यादव का तबादला कर दिया है और दो पुलिस अफसर विजय परकाले और ज्ञानेश्वर मुंडे को निलंबीत किया है। रक्षक ही जब भक्षक बन जाए तो आम आदमी किससे न्याय मांगे। जिनके कंधो पर जनता की सुरक्षा का जिम्मा सौपा गया था। उन्होने अपनी वर्दी के साथ साथ पुलिस प्रशासन के दामन को भी दागदार कर दिया। इन्सानियत को कलंकित ही नही बल्कि उसके चिथडे उडा दिए है। वहशी पुलिस अफसर का तबादला करके या निलंबित करके उनके गुनाह को माफ नही किया जा सकता उन्हे उनकी किये की सजा ज्यादा से ज्यादा और जल्द मिलनी चाहिए ताकी फिर और कोई ऐसी हिमाकत ना कर सके। महिला कल भी असुरक्षित थी और आज भी असुरक्षित ही है।